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Saturday, July 21, 2018

उनका नाम क्या था


दिल्ली,जो देश की राजधानी है।देश की राजधानी के साथ-साथ वह देश के महानगरों में भी शुमार है।महानगर,जहाँ सुबह होते ही भागदौड़ होती है,कोई ट्रैन से,कोई मेट्रो से,कोई बस से,तो कोई अपनी गाड़ी से ही अपनी मंजिल की तरफ बढ़ चलते है।मंजिल से आशय रोजगार से है जिससे उनका जीवन निर्वाह होता है।सुबह सब ऐसे दौड़ते है मानो यह उनका आखिरी दिन है और वह अपने जीवन मे बची सब चीजों को उसी दिन में ही पूरा कर लेना चाहते है।अगली सुबह फिर यही कहानी ,लेकिन इसे ही तो शायद शहरी जीवन कहते है।जहाँ सब एक-दूसरे को पीछे छोड़ कर आगे निकल जाना चाहते है।क्यू भाई,ऐसा करे भी क्यों ना! शहरों मे तो पहले एक अच्छी नौकरी मिलना,मानो भूस मे से सूई निकालने के बराबर होता है।अब अगर सूई निकाल ली तो ऐसी व्यवस्था तो करनी ही पड़ेगी ना ताकी सूई फिर ना खो जाए।बस इसी डर से लोग सुबह भागते है,आधा मन होने के बाद भी काम पूरा करते है जैसे कोई मशीन करता है।
दिल्ली के मार्च महीने का एक समान्य दिन था,दोपहर के कोई दो बजे होंगे।लोग स्टैंड पर खड़े,बस का इंतजार कर रहे थे।कमल भी उसी भीड़ मे था।बस आती दिखी तो स्टैंड पर थोड़ी अफरातफरी  हूई।बस के रुकने पर सवारी चढ़ने और उतरने का सिलसिला थोड़े वक़्त तक चला।कमल भी उस बस में चढ़ गया था।पहले चढ़ने के कारण उसे सीट पर बैठने का गौरव भी हासिल हुआ,लेकिन चेहरे पर इसकी खुशी नहीं दिखी।चेहरा पहले के जैसा ही स्थिर,शांत और थोड़ी सी उदासी भी।दिखने में भी वो ज्यादा आकर्षक नहीं लग रहा था।सांवला रंग,नोकीली नाक,बड़ी बड़ी भौंहे ,बड़े और बेढंग तरीके से समेटे गए बाल,हल्की-हल्की दाढ़ी।आकर्षक ना हो कर के भी लोग उसकी तरफ आकर्षित हो रहे थे,सिर्फ उसके रूप को देखकर ही नही उसका पहनावा भी लोगो को अपनी ओर खींच रहा था।चेक की ढीली शर्ट जिसका एक बाजू पैंट के अंदर तो दूसरा हिस्सा बाहर लटक रहा था।आस्तीन को कोहनी तक मोड़े था।पैंट भी फॉर्मल थी ,सिर्फ पैंट ही नही कमल ऊपर से नीचे तक फॉर्मल मे था और हाथ में एक फोल्डर था जिसमें कुछ कागजात थे। हालत देखकर तो लग रहा था कि वह इंटरव्यू दे कर आ रहा है,और वह भी एक नही कम से कम दो-तीन तो दे कर आ ही रहा है।लोगो ने एक पल ध्यान दिया और दूसरे ही पल अपने-अपने मशरूफ़ हो गए।सब ने इसे व्यक्तिगत मामला समझ के छोड़ दिया।क्या पता कोई उससे इस हालत के बारे मे पूछे तो वह उस पर ही टूट पड़े और सुबह से मन  में जितना गुस्सा हो,सब उड़ेल दे। बैठे-बैठे कमल अपने अतीत में चला गया।जहाँ वह और उसके पिता,उसके आगे की पढ़ाई के बारे मे बहस कर रहे थे।पिता चाहते थे बेटा साइंस ले पर कमल का मन आर्ट्स मे था ।साइंस का सर कहाँ है?उसके पैर कहाँ है?ये चीज़ समझने में कमल अभी तक कामयाब नही हो पाया था।लेकिन राजनीति ,इतिहास के बारे मे कुछ भी पूछ लो,आपको कभी निराश नहीं होना पड़ेगा दसवीं में भी इन्ही दोनो विषयो मे उसके अच्छे अंक आये थे और शायद पूरी क्लास में उसके इन दो विषयो मे सबसे अच्छे अंक थे।साइंस और मैथ्स के विषय को भी अच्छे अंको से पास किया था,पर ये केवल रट्टा मारने का कमाल था।
पिता ने खूब समझाया की साइंस ही उसके लिए बेस्ट है।आर्ट्स मे कोई फ्यूचर नही है।साइंस दिलवाने के पीछे उनकी मंशा थी कि बेटा इंजीनियर बने।
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'देख,आर्ट्स मे कोई फ्यूचर नही है।साइंस तेरे भविष्य के लिए सही रहेगी।माना तेरे अंक उसमें कम आये पर कोई बात नही थोड़ी और मेहनत करेगा तो इन विषयों मे भी अच्छे नंबर आएंगे।'
"नहीं पापा,मेरी दिलचस्पी आर्ट्स सब्जेक्ट में ज्यादा है।साइंस मुझे पल्ले नही पड़ता है और मुझे लगता है की आर्ट्स मे भी मैं अपना भविष्य बेहतर बना सकता हूँ ,"कमल ने संकोच के साथ कहा।
बाप,बाप होता है ,जानते थे कि बेटा क्या कहेगा।उसकी बातें खत्म होते ही बोले-इंटरनेट है ना तेरे पास तो जरा उस में देख की देश के बड़े-बड़े लोग किस विषय के छात्र थे ।अरे!आधे तो इंजीनियर होंगे।साइंसवालो ने ना केवल साइंस के फील्ड पर कब्जा कर रखा है बल्कि आर्ट्स के फील्ड में भी साइंस का ही वर्चस्व है।लेखक,कलाकार तथा बड़े-बड़े अधिकारी में बहुत से साइंस पढ़ कर भी इन क्षेत्रों में सफल हुए है।
' पर आर्ट्सवाले भी तो सफल हुए है ना इन क्षत्रों मे तो मैं भी हो जाऊंगा।मुझे अपने पर भरोसा है। '
' होने को तो क्या नही हो जाता,मैं तो बस इतना कह रहा हूँ कि साइंस पढ़ने पर और भी विकल्प मिल जाएंगे जो तेरे लिए ही अच्छा है। '
अपने पिता के द्वारा बार-बार साइंस लेने की जिद्द से वह खीझ कर बोला-जब मुझे साइंस पसंद ही नही तो क्यों उसे पढू।आर्ट्स पढ़नेवाले निम्नस्तर जीवन जीते है क्या?इतना क्यू आप आर्ट्स को घटिया समझ रहे है।कुछ न कुछ तो कर ही लूंगा जिंदगी में।
"अभी तेरी उम्र ही कितनी है जो तू इतने बड़े बड़े फैसले लेने लगा।तेरा बाप हू,दुश्मन थोड़ी।अगर तू मुझे अपना दुश्मन समझता है तो कर ले अपने मर्ज़ी की,मैं नही बोलता कुछ तुझे।बाप थोड़ी हूँ,दुश्मन हूँ ना,मेरी बातें कैसे मान लेगा ,कर अपने मर्ज़ी की ,"इतना कहने के बाद शांत वही खड़े रहे ।
कमल की उम्र इतनी नही थी कि अपने सही-गलत का फैसला कर पाता,पर उसकी उम्र इतनी थी कि वह अपने रुचि और अरुचि में फर्क कर सके।उसने सोचा कि पापा की बात ही मान लेनी चाहिए और साइंस ले ली।पापा खुश ,मम्मी खुश,दोनो की खुशी देखकर कमल खुश।लेकिन साइंस मे उसे अब भी कोई खास सफलता नहीं मिली जितनी राजनीति,इतिहास मे मिली थी।ऐसे ही अलग-अलग तरीके की घटना उसके दिमाग में चलती रहती है जब भी वह सफर करता है।आज उसे अपने और पिता के बीच की यह बात याद आ गयी थी।
जैसे-तैसे कर के कमल ने बी.टेक तो कर लिया था परंतु  अंक उतने अच्छे नही थे।नया-नया युवा बना था तो थोड़े से वक़्त में ही पूरी दुनिया को अपनी मुट्ठी में रख लेने की इच्छा रखता था।बी.टेक करने के बाद तुरंत ही वह नौकरी की लालसा में लग गया।कुछ जगह नौकरी मिली भी पर वेतन कम होने के कारण छोड़ दिया,कई स्थान पर छोटी पोस्ट की नौकरी मिल रही थी पर उसने इंकार कर दिया क्योंकि वह उन नौकरियों को अपने लायक निहि समझता था।वर्तमान मे भी वह ऐसा ही करता था।कमल पहले अवसर में ही इतना पा लेना चाहता था,जितना पाने में लोगों को वर्षो लग जाते थे।चंचल मन था इसलिए ज़िन्दगी की हक़ीक़तों से अवगत नही हो पाया था।जोशभरी फिल्मे ,गाने,देख-सुन कर उसके अंदर ऊर्जा का संचार होता था और ठान लेता था कि वह हर नहीं मानेगा,कोशिशें करता रहेगा क्योंकि कौशिश करने वालो की कभी हार नही होती।मगर उसे ध्यान नही था कि जिस नियम से वह कार्य कर रहा है,उसका परिणाम केवल शून्य ही निकलेगा।जैसे दीवार को धक्का देने पर दीवार तो टस से मस नही होती मगर आदमी थक के चूर हो जाता है।
उसने अपना फ़ोन निकाला,कुछ नंबर डायल कर के कान के पास लगाया।
ट्रिंग-ट्रिंग.. ट्रिंग-ट्रिंग.. फ़ोन उठा।
"हेलो,गुड मॉर्निंग सर् मैं कमल कुमार आपके ऑफिस में एक हफ्ते पहले इंटरव्यू दिया था।आपने बोला था,एक हफ्ते में कॉल कर के बताएंगे,नौकरी मिलेगी या नहीं," कमल ने थोड़े उत्साह के साथ पूछा।
' सॉरी मि.कमल पर नौकरी किसी और को मिली है। '
कॉल कट जाता है।एक जगह फिर निराशा हाथ लगी।कभी-कभी तो मन करता है छोड़ दू सब।कुछ लोन ले कर अपना ही कुछ स्टार्ट क्यूँ ना कर दू।यह सारी बाते उसके मन में चल रही थी।उसने फिर एक और नंबर घुमाया।
"हेलो सर् ,मैं कमल कुमार आपके ऑफिस में एक हफ्ते पहले इंटरव्यू दिया था आपने बोला था एक हफ्ते में कॉल कर के बताएंगे,नौकरी मिलेगी या नही," यह वाक्य तो उसे कंठस्थ याद हो रखा था।
कुछ बोला उधर से मगर कमल का चेहरा देख कर कोई भी बता सकता था क्या बोला होगा। 'सॉरी सर्,नौकरी किसी और को दे दी गयी या 'आप इस नौकरी के हकदार नहीं है,सॉरी।'ऐसा ही कुछ बोला होगा।अब क्या किया जाए।उसने फिर फ़ोन पर अपनी उंगलियों को फेरा।
ट्रिंग-ट्रिंग.. ट्रिंग-ट्रिंग..
' बता क्या हूआ,मिली नौकरी।'
' कहाँ यार,अब तो आदत सी है ऐसे जीने में।'
' तुझे तो कब से कह रहा हूं ,कोई छोटी-मोटी नौकरी ही कर ले और बड़ी नौकरी के लिए इंटरव्यू देता रह।कम से कम कुछ खर्चा पानी तो निकल ही आएगा।'
' अबे छोटी नौकरी के लिए बी.टेक किया था।करूँगा तो बड़ी वर्ना नौकरी को टाटा ,बाई-बाई। लाखो रूपए माँ-बाप ने इसलिए लगाए थे कि आगे चल कर बेटा हमारा सात-आठ हजार की नौकरी करेगा।अरे उनके भी तो कुछ सपने होंगे अपना खून जला-जला के मुझे पढ़ाया लिखाया और क्या बुढ़ापे में भी चिंता से खून जलाते रहे।नहीं यार,ऐसा तो नही होने दूंगा।आखिरी बार कुछ इंटरव्यू क् पता दे दे।इस बार हुआ तो हुआ वर्ना अपना ही कोई बिज़नेस खोल दूंगा ।बैंक में लोन के लिए भी अप्लाई कर दिया।'
' हाँ,तेरी भी बात सही है थोड़े देर में एस .एम.एस कर दूंगा ।तेरे लायक दो जगह का इंटरव्यू आया है।'
संजय ,कमल के बचपन का यार था।दोनो ने साथ में बारहवीं पास की थी।एक ही स्कूल से दोनों ने बारहवीं की मगर संजय ने आर्ट्स लिया था,दसवीं के बाद।इसी वजह से कमल भी आर्ट्स लेना चाहता था।अभी वह एक छोटी सी जॉब सर्च कंपनी में काम कर रहा है।वही से वह कमल को इंटरव्यू का पता बताता था।दोस्ती पुरानी थी शायद इसी का फल था कि संजय उसे इंटरव्यू का पता मुफ्त में देता था जबकि बाकियो से पैसे लेता था।
"और बता,अंकल-आंटी कैसे है," संजय ने पूछा।
' सब अच्छे है ,उधर सब कैसे है।'
ऐसे ही फिर घर के हाल-समाचार पूछे।आखिर में एक दूसरे को बाई बोलकर विदा किया और फ़ोन काट दिया।
कमल को यह एहसास भी ना था कि उसकी बातों को कोई ध्यान से ना केवल सुन रहा है बल्कि उसे परख भी रहा है।शायद जब से वह उसके बगलवाली सीट पर बैठा तब से ही वह उसके रूप-रंग ,व्यवहार,मुख पर पर छाई उदासी,पहले कॉल से आखरी कॉल तक उसकी बातों से उसके मस्तिष्क में भी जा घुसा वो ।शायद उसके इस हालात की नब्ज पकड़ ली उसने।दिखने में भी शांत,बुद्धिमान तथा अनुभवी लग रहे थे।
वह कमल की तरफ देख कर बोले-बेटा,कितनी उम्र है तुम्हारी।
कमल चकित हुआ और बोला-23 साल।
' मतलब इतने बूढ़े भी नही हुए हो।फिर यह छोटी नौकरी क्यों छोड़ दे रहे हो।इमारत भी पहले एक मंज़िला बनती है,फिर दूसरी मंज़िला ऐसे ही वह अपने अंतिम मंज़िल तक पहुंच जाती है।एकाएक तो वह भी इतनी बड़ी इमारत नहीं बनती।क्या पता इन छोटी नौकरियों से ही पदोन्नति करते-करते एकदिन उस पद पर पहुंच जाओगे जिस पद के लिए तुम इन छोटी नौकरियों को ठुकरा रहे हो।'
अंकल मेरी बातें सुन रहे थे यह जान कर कमल को आश्चर्य हुआ पर उम्र में बड़े देखकर इस चीज का विरोध नहीं किया और उनकी बात से सहमत होकर बोला-अंकल आपकी बात सही है लेकिन अगर मैं छोटी नौकरियाँ कर भी लू तो भी क्या गारण्टी है कि मेरी पदोन्नति उतनी हो जाये जितने के लिए मैं आज इन नौकरियों को छोड़ रहा हूँ।अगर ऐसा नही हुआ तो मेरा समय और पढ़ाई दोनो ही बर्बाद हो गए ना और काम तनख्वाह में गुजारा भी अच्छे से नही होगा।
" अगर तुम मेहनत करने से नही डरते हो,आलस तुम्हारे स्वप्न में भी नही है,दृढ़ संकल्प और पूरे लगन के साथ कार्य करना जानते हो तो मैं पूरे भरोसे के साथ कहता हूं बेटा कि तुम्हे 15 साल से भी कम समय लगेंगे उस पद पर पहूंचने में जिस पद के लिए आज तुम संघर्ष कर रहे हो,"अंकल ने पूरे विश्वाश के साथ कहा।
' यह सब तो कहने वाली बातें है ।'
अंकल ने तुरंत बोला-नहीं बेटा,यह कहने वाली बातें नही है।अभी शायद समझ नही पा रहे हो ।मेरे पिता इस शहर में अंडे का ठेला लगाते थे साथ में चाय भी बेचा करते थे ।मैं भी कभी-कभी उनकी मदद करता था।वह मुझे बहुत पढ़ाना चाहते थे ताकि मैं बड़ा आदमी बन सकू पर मेरी पढ़ाई बारहवीं से ज्यादा ना हो  सकी,घर के हालात देखकर मुझे भी आगे पढ़ने का जी नहीं किया।एक निजी कंपनी में चपरासी की नौकरी करने लगा।चाय बनाने आती थी तो चाय भी पिलाने लगा सब को।इन कामो को भी इतने जोश के साथ ,लगन के साथ करता था कि पूरा स्टाफ खुश रहता था और बॉस भी।इसी मेहनत के कारण बॉस ने मुझे अपना पर्सनल सेक्रेटरी बना लिया।तनख्वाह भी अच्छी मिलने लगी।जीवनस्तर भी पहले से बेहतर हो गया है।माना की यह कहानी इतनी प्रेरणादायक नही है कि समाचारपत्रों में छापना चाइए,मुझे पुरस्कार दिया जाना चाहिए मगर मेरे बचपन की तुलना में हालात अच्छे हो गए।जरूरते तो पूरी हो जाती है और थोड़ा बचत भी हो जाता है।अगर तुम घर पर बैठ कर ही यह निर्णय लेते रहो कि यह रास्ता तुम्हारी मंज़िल की तरफ नही जाता तो तुम कभी घर से निकल ही नही पाओगे।मंज़िल तक पहुँचना चाहते हो तो पहले गलियों में जाओ,क्योंकि गालियां एक-दूसरे से जुड़ी होती है और गली-गली घूम कर ही तो तुम उस गली तक पहुँचोगे जो तुम्हारी मंज़िल तक जाती होगी।लगता है मैंने कुछ ज्यादा ही लंबा भाषण दे दिया।
"अरे नही,इतना भी लंबा नही था,"कमल में मुस्कुरा कर कहा।
' चलो तुम्हे तो मंज़िल अभी ढूंढनी है,पर मेरी मंज़िल आ गयी," इस कह कर वह सीट से उठे और आगे उतरने वालो की कतार में जा खड़े हुए।
स्टॉप आ गया।कतार में खड़े लोग एक-एक कर के बस से उतरने लगे जब अंकल उतरने वाले थे तो उन्होंने एक बार मुस्कुरा कर देखा और उतर कर जाने लगे।
अंकल के जाने के बाद कमल थोड़ा सोच में पड़ गया।अंकल ने बाते साधारण ढंग से कही थी लेकिन जीवन के यथार्थ के साथ कहा था। पहली बार किसी की बातों से उसका इतना मनोबल बढ़ा,अब उसने ठान ली कि वह अब बड़ी खुशियों की खातिर छोटी -छोटी खुशियों का गला नहीं घोटेगा।तभी उसके चेहरे के भाव बदलने लगे।वह कुछ भूल गया ,ऐसी चीज़ जिसका मलाल उसे हर वक़्त रहेगा जब भी वह यह वाक्या याद करेगा।मन ही मन अपने आप से पूछने लगा पर पता था कि जवाब नहीं मिलेगा।मन ही मन बोला-'उनका नाम क्या था।'
समाप्त ।

Sunday, July 8, 2018

कुछ भी

आपका स्वागत है मेरे घर में । एक छोटी सी कौशिश है ,कुछ लिखने की